बाल मन्दिर से उच्च माध्यमिक विद्यालय तक एक नजर
कठोरतम रचनाओं का संसार और गुलाब की कोमल पंखुड़ियों सा शिशु। जिसके लिए ईसा मसीह ने भी स्नेह दिया। उसके बचपन की शुरू की शिक्षा की प्रक्रिया बिना किसी तनाव के माध्यम से ऐसी शिक्षा का आविष्कार किया मैडम मोण्टेसरी ने। इसी कार्य शिक्षा का नाम पड़ा मोण्टेसरी शिक्षण पद्धति। इसमें बच्चों को उपकरणों, खेल के माध्यम से शिक्षण की व्यवस्था होती है। इसी कारण मूलभूत आवश्यकता को देखकर राज्य सरकार ने भी विशिष्ट मोंटेसरी विद्यालय के नाम से मोंटेसरी स्कूलों को विशेष श्रेणी में लेकर 90ः अनुदान मान्य कर दिया।
प्रसिद्ध वैज्ञानिक व मोण्टेसरी प्रशिक्षण के प्रोफेसर के यू भामरा ने जयपुर व राजलदेसर में स्कूलों के प्रशिक्षण केंद्रों के माध्यम से इस प्रशिक्षण का प्रसार किया। जो कि सन् 1969 तक राज्य सरकार द्वारा एक वर्षीय पाठ्यक्रम मान्य रहा। बाद में प्रोफेसर भामरा के देहांत के बाद प्रशिक्षण स्तर में कमी आई और यह पाठ्यक्रम मान्यता के स्तर से खत्म हो गया। यह प्रशिक्षण प्राप्त शिक्षकगण मोंटेसरी विद्यालयों में प्रमुख रहे और अपनी सेवाएं दी।
बाल मन्दिर उच्च माध्यमिक विद्यालय
शिशु की आराधना के केंद्र जहां शिशु ही सब कुछ बाकी सब गौण। ऐसे केन्द्रों का नाम पड़ा बाल मंदिर, बाल भारती, बाल बाड़ी और बाल निकेतन। बाल मंदिर वर्तमान में सरदार शहर के मुख्य बाजार स्थित घंटाघर से दक्षिण मुख्य मार्ग व नवीन विशाल तेरापंथ भवन के सामने स्थित है। यह संस्था 27 जून 1947 को सरदारशहर में वर्तमान बालिका विद्यालय के पीछे के भवन में शुरू की गई। मात्र 2 अध्यापक 24 बच्चे और ₹ 6071.20 का व्यय (वार्षिक) के साथ शुरुआत हुई। 1 अप्रैल 1951 से राजकीय अनुदान शुरू हुआ। राज्य सरकार के स्तर पर सभी कार्य यथा पदों की स्वीकृति, अनावर्तक अनुदान, ऑडिटोरियम के लिए संस्था के मूलभूत आधार स्तंभ व संरक्षक प्रेरणा स्त्रोत स्वर्गीय श्री चंदनमल जी बैद का नाम सर्वोपरि है। उनके पोषण और संरक्षण को संस्था कभी भी भूल नहीं पाएगी। संस्था के छात्रों में उत्तरोत्तर वृद्धि व जगह की कमी के कारण नए स्थान की तलाश के बाद भवन का शिलान्यास तत्कालीन मुख्यमंत्री राजस्थान स्वर्गीय श्री मोहनलाल जी सुखाड़िया द्वारा किया गया। जो दिनांक 22 नवंबर 1965 को संपन्न हुआ । बाद में इनके द्वारा ही दिनांक 8 नवंबर 1967 को भवन का उद्घाटन संपन्न हुआ। 2 वर्ष की अल्पावधि में भवन का निर्माण संस्था के हितेषी स्वर्गीय श्री सोहन लाल जी आंचलिया का अमूल्य योगदान तथा सहयोग रहा। इस भवन में ₹75000 का एकमुश्त दान स्वर्गीय श्री सोहनलाल जी दूगड़ फतेहपुर निवासी द्वारा किया गया। स्वर्गीय श्री सोहन लाल जी की प्रतिमा का अनावरण राज्य के राज्यपाल नवरंग लाल टिबरेवाल ने किया। स्कूल परिसर 6189 वर्ग मीटर भूमि पर स्थित है।
स्वर्गीय श्री चंदनमल जी बैद के कारण माननीय श्री बरकतुल्लाह खाँ मुख्यमंत्री राजस्थान, श्री परसराम जी मदेरणा, शिवचरण जी माथुर व श्रीमती सुमित्रा सिंह का सहयोग विशेष रहा। स्थानीय कार्यकर्ता आधारस्तंभ श्री मोहनलाल जी जैन, श्री गणेशमल जी चंडालिया, श्री बभूतमल जी बरड़िया, डॉ. मूलचंद जी सेठिया, श्री हीरालाल जी सेठिया, श्री भंवर लाल जी सुराणा, श्री अमृत कुमार जी दूगड़, श्री चंदनमल जी बरडिया, श्री जुगराज जी चंडालिया व श्री जय सिंह जी चंडालिया, श्री रतन लाल जी बुच्चा। श्री हीरालाल जी बुच्चा की संस्था कृतज्ञ है।
सत्र 2013 तक 25 वर्ष तक व्यवस्थापक पद पर श्री जुगराज जी ने अपने अनुभव व व्यापारिक दृष्टिकोण के सभी तथ्यों का उपयोग करते हुए संस्था को अमूल्य संरक्षण प्रदान किया तथा लाभान्वित किया जिसके लिए संस्था उनकी कृतज्ञ है।
अब गत 10 वर्षों से श्री राजेंद्र जी पींचा व्यवस्थापक पद पर कार्यरत हैं जिन का सहयोग व संरक्षण संस्था को प्राप्त है।
संस्था विकास व आर्थिक सौजन्य में श्री सुमति चंद जी गोठी, स्वर्गीय श्री हनुमा.नमल जी दूगड़ (जौहरी परिवार) व स्वर्गीय श्री मूलचंद जी मालू परिवार का आर्थिक सहयोग प्राप्त होता रहा है। श्री जौहरी परिवार द्वारा उच्च माध्यमिक विभाग में 14 कमरों का भवन निर्मित करवाकर दिया गया। श्री गोठी परिवार द्वारा चार कमरे ऊपर हॉल मय बरामदे सहित बनवाकर संस्था को दिया गया तथा श्री चंदनमल दूगड़ ट्रस्ट द्वारा श्री कन्हैयालाल जी दूगड़ ने 600 सीट युक्त हॉल का निर्माण करवाया गया।
बाल मन्दिर उच्च माध्यमिक विद्यालय
संस्था राज्य सरकार द्वारा दिनांक 30 जून 2011 तक 90ः अनुदान सूची में थी। उसके बाद राज्य सरकार द्वारा सभी संस्थाओं का अनुदान राज्य में बंद कर दिया गया। संस्था को प्रधानाध्यापक (एक) प्रथम श्रेणी तीन द्वितीय श्रेणी, तृतीय श्रेणी अध्यापक अट्ठारह, वरिष्ठ लिपिक एक, कनिष्ठ लिपिक एक, चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी सात पद स्वीकृत हैं, जिन पर नियुक्त कर्मचारियों को अनुदान देय था। अनुदान बंद होने के बाद राज्य सरकार ने अन्य कोई विकल्प भी नहीं दिया। जिससे आवर्तक तथा अनावर्तक दोनों ही प्रकार से संस्था का सारा वित्तीय भार कार्यरत स्टाफ पर आ गिरा। इससे पहले संस्था का आर्थिक संतुलन बिगड़ने का आसार बने क्योंकि अभिभावकों से एक सीमा तक ली जाने वाला शुल्क ही एकमात्र आय का साधन शेष रहा। फल स्वरुप कठोर वित्तीय अनुशासन के माध्यम से संस्था पर वित्तीय भार तो नहीं बढ़ा, लेकिन वेतन भत्तों को न्यूनतम करना मजबूरी रही तथा अन्य आवश्यक खर्च बढ़ोतरी के साथ यथावत रहे।
श्री महावीर प्रसाद जी भोजक, सुश्री अवतार कौर बिरदी, श्री डालचन्द जी बिदावत, श्री मोहनलाल जी शर्मा, श्री बजरंग लाल जी शर्मा आदि विद्यालय के प्रधानाचार्य रहे। वर्तमान में श्री जोरावर सिंह जी गत 4 वर्षों से प्रधानाचार्य पद पर कार्यरत हैं।
संस्था में अनुदान प्रक्रिया में श्री उमाशंकर जी शर्मा 15 जुलाई 1969 को कनिष्ठ लिपिक नियुक्त हुए और श्री गणेशमल जी चिण्डालिया व्यवस्थापक के असीम स्नेह संरक्षण के कारण इनकी अभिशंषा पर श्री चन्दनमल जी बैद ने राज्य सरकार से संस्था को एक वरिष्ठ लिपिक व एक कनिष्ठ लिपिक का पद स्वीकृत किया। जो राजस्थान का एक उदाहरण बना। इस पद पर दिनांक 01 अप्रेल 1973 से श्री उमाशंकर जी शर्मा को पदोन्नत किया गया जो कि अनवरत 30 जून 2011 तक इसी पद पर कार्यरत रहे। बाद में श्री जुगराज जी चिण्डालिया व्यवस्थापक की अभिशंषा पर प्रबन्ध समिति के निर्णयानुसार इनकी सेवाओं में अभिवृद्धि दिनांक 01 जुलाई 2011 से की गई। जिस पर आज भी कार्यरत हैं। इस प्रकार एक पद, एक संस्था, एक ही व्यक्ति, एक ही कार्य पर 53 वर्षों से अपने दायित्व का निर्वहन कर रहे हैं।
दूसरी ओर शहर में कुकुरमुत्ते की तरह बढ़ती शिक्षण संस्थाओं ने शहर में गली पड़ोस बाहरी क्षेत्रों में वाहनों के माध्यम से परिवहन तथा साबुन की तरह तीन लेने पर एक निशुल्क सिद्धांत को लेकर दो प्रवेश पर तीसरा निशुल्क । इन कारणों के साथ छात्रों की संस्था में उत्तरोत्तर हर वर्ष गिरावट आई । इससे वित्तीय ढांचे को चोट आई और आय भी कम हुई। उस समय वर्तमान व्यवस्थापक श्री राजेन्द्र पींचा द्वारा अपने अनुभव कार्यक्षमता, आत्मविश्वास के साथ अपने संतुलन को कायम रखते हुए कर्मचारीगण को साथ रखते हुए इस विकट परिस्थिति में भी आगे निकलने का मार्ग प्रेरित किया। एक नया मोड़ यह आया कि अभिभावकों का अंग्रेजी माध्यम की ओर बढ़ते रुझान के कारण अंग्रेजी शिक्षण संस्थाओं को संबल मिला। संस्था में छात्र संख्या में गिरावट का दौर जारी रहा और यह अनुपात घटता ही गया। संस्था का गौरवमयी इतिहास रहा है कि संस्था के पुरातनछात्र आजकल सीए, व्यापारी, वैज्ञानिक, प्रशासनिक अधिकारी और चिकित्सक भी हैं। जहां इसी संस्था में कक्षा 5 तक 700 छात्र छात्राएं थी, वहां आज 400 छात्र-छात्राएं हैं जो कि एक चिंतनीय विषय है। साथ ही कार्यकर्ताओं के लिए है नई योजना को साकार रूप देने का समय और चिंतन।
संस्था का अपने स्तर पर परिचयात्मक विवरण इस प्रकार है।
शहर की संस्था श्री सर्व हितकारिणी सभा सरदारशहर, चूरु जो कि बाल मंदिर व बालिका विद्यालय की पितृ संस्था भी है, के अधीन रहा जिसमें आयकर विभाग के 12। रजिस्ट्रेशन के अंतर्गत पृथक से बाल मंदिर का पंजीयन विधिवत होने के कारण को सही मानते हुए संस्था के आयकर वकील श्री विजेंद्र कुमार जी जैन के निर्देशानुसार संस्था को अपना रजिस्ट्रेशन रजिस्ट्रार संस्थाएं चूरू के अधीन क्रमांक 01/चूरू/2000-01 के अंतर्गत दिनांक 20 मार्च 2000 को करवाना पड़ा। जो कि एक वरदान रहा। संस्था का संघ विधान भी नियमानुसार तैयार कर पंजीयन हेतु प्रस्तुत करने पर संस्था को रजिस्ट्रेशन प्रमाण पत्र प्राप्त हुआ। इसी क्रम में संस्था प्रबंध समिति को भी पंजीकृत करवाया गया और उसके बाद नवीनीकरण पर रजिस्ट्रार संस्थाएं चूरू कार्यालय में पत्रावली में शामिल किया गया।
शिक्षा विभाग राजस्थान द्वारा प्राथमिक स्तर पर निदेशालय राजस्थान, बीकानेर द्वारा 1 फरवरी 1951 से मान्यता प्रदान की गई।
अपर निदेशक प्राथमिक एवं माध्यमिक शिक्षा द्वारा पत्रांक 67 दिनांक 09 दिसम्बर 1968 ने संस्था को स्थाई मान्यता प्रदान की।
जिला शिक्षा अधिकारी शिक्षा 02/चूरू के पत्रांक 230 दिनांक 1 सितंबर 1998 के द्वारा उच्च प्राथमिक स्तर को स्थाई मान्यता प्रदान की गई।
माध्यमिक शिक्षा बोर्ड राजस्थान अजमेर द्वारा पत्रांक 9273 दिनांक 30 सितंबर 2003 को माध्यमिक स्तर पर स्थाई मान्यता प्रदान की गई।
माध्यमिक शिक्षा बोर्ड राजस्थान अजमेर द्वारा पत्रांक 3283 दिनांक 5 फरवरी 2010 द्वारा संस्था को उच्च माध्यमिक स्तर पर वाणिज्य वर्ग के अंतर्गत मान्यता प्रदान की गई।
कक्षा नर्सरी से उच्च माध्यमिक स्तर पर कक्षाओं की मान्यता के बाद विभाग के रजिस्ट्रेशन विभाग चूरू के रजिस्ट्रेशन और आयकर विभाग के अधीन संस्था का रजिस्ट्रेशन 01 अप्रैल 1999 से 117 / 19 पत्रांक 623 दिनांक 29 जून 1999 द्वारा आयकर आयुक्त बीकानेर, मुख्यालय जयपुर द्वारा किया गया। इसी क्रम में आयकर आयुक्त जयपुर तृतीय के अधीन संस्था को पत्रांक 929 दिनांक 16 जुलाई 2007 द्वारा आयकर अधिनियम 1961 की धारा 80जी 5/6 के अंतर्गत दानकर्त्ता द्वारा दिया गया दान उस के पक्ष में आयकर छूट अवधि 01 अप्रेल 2007 से 31 मार्च 2010 तक दी गई। जिसे बाद में आयकर आयुक्त जयपुर तृतीय द्वारा पत्रांक 927 दिनांक 16 जुलाई 2007 के अंतर्गत उक्त अवधि छूट प्रमाण पत्र को आजीवन कर दिया गया। इसे रिन्यू कराने की आवश्यकता नहीं होगी। फिर संशोधन आदेश पर पुनः दिनांक 02 अक्टूबर 2021 से आयकर छूट प्रमाणा पत्र 80जी को 5 पांच वर्ष के लिए नवीनीकरण करवा लिया गया है। इसी प्रकार को 12। रजिस्ट्रेशन भी पुनः नवीनीकरण करवाकर 5 वर्ष की अवधि के लिए करवा लिया गया है।
इन सब के बाद यह तथ्य सामने आ रहा है कि संस्था की वर्तमान स्थिति छात्रों की कमी के कारण आय संसाधनों में कमी के कारण संस्था की आर्थिक रीढ़ को चोट आई है। इसके संबंध में यही उचित माना गया है कि दानवीर ट्रस्ट/ट्रस्टी व्यक्ति दानदाता को सारी वस्तुस्थिति को समक्ष रखते हुए आर्थिक सहयोग लिया जाए और सौजन्य का आधार लिया जाए। जिसे विधिवत अनुबंध किया कर लिया जाए ताकि इस संस्था को अपनी गरिमा बचाने, आगे बढ़ने में सहयोग मिल सके और इसके संचालन में गति आ सके।
संस्था हित में यह भी विचार किया गया कि आगामी कम से कम 5 वर्ष, अधिक आवश्यकता अनुसार दान दाताओं के निर्णय अनुसार कम या अधिक किया जा सके। भविष्य के लिए नवीन आवश्यकता, सुधार, व्यवस्था, छात्र आदि सभी चिंतन विचारणीय हैं ताकि संस्था को पुनर्जीवन मिल सके।
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